28 मई 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर 2025-26 खरीफ सीजन के लिए 14 फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में बढ़ोतरी की घोषणा की। उनके मुताबिक, यह कदम देशभर के किसानों की कमाई बढ़ाने और धान, तिलहन, और दलहन जैसी फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए उठाया गया है। लेकिन क्या यह घोषणा वाकई किसानों के हित में है, या फिर इसमें भी कोई पेंच छुपा है? आइए, इस फैसले को गहराई से समझते हैं और सोशल मीडिया पर इसकी प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण करते हैं।
MSP बढ़ोतरी का डिटेल: क्या है नया?
प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) की रिपोर्ट के अनुसार, कैबिनेट कमेटी ऑन इकॉनमिक अफेयर्स ने 14 खरीफ फसलों के लिए MSP में बढ़ोतरी को मंजूरी दी है। सबसे ज्यादा बढ़ोतरी नाइजरसीड (Nigerseed) के लिए हुई है, जो Rs. 820 प्रति क्विंटल है, इसके बाद रागी (Rs. 596 प्रति क्विंटल), कपास (Rs. 589 प्रति क्विंटल), और तिल (Rs. 579 प्रति क्विंटल) का नंबर है। कुछ मुख्य फसलों की नई MSP इस प्रकार है:
- धान (Paddy Common): Rs. 2369 प्रति क्विंटल (पिछले साल से Rs. 69 की बढ़ोतरी)
- ज्वार (Jowar Hybrid): Rs. 3699 प्रति क्विंटल (Rs. 328 की बढ़ोतरी)
- बाजरा (Bajra): Rs. 2775 प्रति क्विंटल (Rs. 150 की बढ़ोतरी)
- अरहर (Tur/Arhar): Rs. 8000 प्रति क्विंटल (Rs. 450 की बढ़ोतरी)
- मूंग (Moong): Rs. 8768 प्रति क्विंटल (Rs. 86 की बढ़ोतरी)
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह बढ़ोतरी 2018-19 के यूनियन बजट के उस वादे के अनुरूप है, जिसमें MSP को उत्पादन लागत से कम से कम 1.5 गुना करने की बात कही गई थी। इसमें बाजरा के लिए सबसे ज्यादा 63% मार्जिन, मक्का और अरहर के लिए 59%, और उड़द के लिए 53% मार्जिन बताया गया है। बाकी फसलों के लिए यह मार्जिन 50% तय किया गया है।
सोशल मीडिया पर बवाल: किसानों का गुस्सा और सवाल
हालांकि सरकार इस फैसले को किसान हितैषी बता रही है, लेकिन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कई यूजर्स ने इसे अपर्याप्त और भ्रामक बताया है।
@RishiRahar ने एक ट्वीट में दावा किया कि यह MSP स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप नहीं है। स्वामीनाथन आयोग ने MSP को C2 लागत (जिसमें जमीन का किराया और ब्याज भी शामिल होता है) के आधार पर 50% अधिक करने की सिफारिश की थी, लेकिन सरकार ने इसे केवल A2 लागत (जो सिर्फ नकद खर्च और परिवार की मेहनत को शामिल करती है) के आधार पर तय किया है। उनके मुताबिक, इससे किसानों को भारी नुकसान होगा:
- धान: Rs. 766 प्रति क्विंटल का घाटा
- कपास: Rs. 2,365 प्रति क्विंटल का घाटा
- अरहर: Rs. 2,258 प्रति क्विंटल का घाटा
- मूंग: Rs. 2,446 प्रति क्विंटल का घाटा
- उड़द: Rs. 2,443 प्रति क्विंटल का घाटा
@RishiRahar ने एक चार्ट भी शेयर किया, जिसमें C2 लागत, MSP, और किसानों को होने वाले नुकसान का पूरा ब्यौरा दिया गया है। यह चार्ट दिखाता है कि धान की C2 लागत Rs. 3135 प्रति क्विंटल है, जबकि MSP सिर्फ Rs. 2369 तय की गई है, जिससे किसानों को Rs. 766 का नुकसान हो रहा है।
वहीं,
@Hatelies_12 ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा, “अरे बस करिये.. आप तो किसानों की 2 गुनी आय करने वाले थे.. उसका क्या हुआ? बस बातें करते हैं, होता कुछ नहीं।”
@atharvtms07 ने भी कहा कि धान का मूल्य किसानों की मेहनत के अनुरूप नहीं बढ़ रहा और सरकार से इस पर और ध्यान देने की मांग की।
कुछ ने की तारीफ, लेकिन बहुमत असंतुष्ट
कुछ यूजर्स ने इस फैसले की तारीफ भी की।
@Fatima_Khatun01 ने इसे किसानों के लिए प्रेरणादायक कदम बताया और कहा कि इससे उनकी आय में वृद्धि होगी।
@Its_Me_Jasraj ने भी इसे अर्थव्यवस्था और किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी करार दिया। लेकिन ज्यादातर प्रतिक्रियाएं नकारात्मक रहीं।
@rahulpandit1i ने चेतावनी दी कि बिचौलिये फिर भी रास्ता निकाल लेंगे और इसके लिए कठोर नियम लाने की जरूरत है।
स्वामीनाथन आयोग का क्या है मसला?
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लंबे समय से किसानों के लिए एक बड़ा मुद्दा रही हैं। 2017 में The Indian Express की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग ने MSP को C2 लागत के आधार पर 50% अधिक करने की सलाह दी थी, जिसमें जमीन का किराया और ब्याज भी शामिल होता है। लेकिन सरकार ज्यादातर A2+FL लागत (जो सिर्फ नकद खर्च और परिवार की मेहनत को गिनती है) के आधार पर MSP तय करती है। 2017 में भी केवल बाजरा, अरहर, और उड़द जैसी कुछ फसलों के लिए A2+FL लागत पर 50% मार्जिन मिला था, और C2 लागत पर यह सिफारिश किसी भी फसल के लिए पूरी नहीं हुई थी।
MSP का सच: आंकड़ों की हकीकत
PIB की रिपोर्ट में बताया गया कि 2014-15 से 2024-25 के दौरान 14 खरीफ फसलों की खरीद 7871 लाख मीट्रिक टन (LMT) रही, जो 2004-05 से 2013-14 की 4679 LMT से काफी ज्यादा है। इसी तरह, इस दौरान MSP के तहत किसानों को Rs. 16.35 लाख करोड़ का भुगतान किया गया, जबकि 2004-14 में यह राशि सिर्फ Rs. 4.75 लाख करोड़ थी। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बढ़ोतरी वाकई किसानों की जेब तक पहुंच रही है, या फिर यह सिर्फ कागजी आंकड़े हैं?
निष्कर्ष: किसानों के लिए राहत या फिर एक और वादा?
MSP में बढ़ोतरी की घोषणा सतह पर तो अच्छी लगती है, लेकिन स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू न करने की वजह से किसानों में असंतोष साफ दिख रहा है। X पर यूजर्स का गुस्सा और आंकड़े बताते हैं कि यह बढ़ोतरी लागत को कवर करने में नाकाफी है। सरकार को चाहिए कि वह C2 लागत के आधार पर MSP तय करे और बिचौलियों पर सख्ती करे, ताकि किसानों को उनकी मेहनत का पूरा फायदा मिल सके।
Nice Information