भारत के संविधान के निर्माण में बीएन राव (बी. एन. राव) का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था, फिर भी उनका नाम इतिहास की किताबों से लगभग गायब है। हाल ही में, एक ट्वीट थ्रेड ने इस मुद्दे को फिर से उठाया है, जिसमें राव के योगदान को रेखांकित किया गया है। नेहरू ने 1953 में संसद में राव को “संविधान के मुख्य वास्तुकारों” में से एक कहा था, लेकिन फिर भी, सार्वजनिक स्मृति में उनका स्थान बहुत कम है।
राव ने संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व किया, बर्मा का संविधान तैयार किया, और भारतीय संविधान के पहले ड्राफ्ट का निर्माण किया। उनके योगदान में वैश्विक संवैधानिक अध्ययन, न्यायिक स्वतंत्रता, और संघीय ढांचे का निर्माण शामिल है। फिर भी, शिक्षा पाठ्यक्रम और सार्वजनिक प्रवचन में उनका नाम अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।
इस थ्रेड में, ankit रावल (@ankitrawal1182) ने राव की भूमिका को फिर से प्रकाश में लाने की कोशिश की है, जिसमें नेहरू के बयान और राव के ऐतिहासिक योगदान का उल्लेख है। यह थ्रेड सार्वजनिक चेतना में राव के योगदान को फिर से स्थापित करने की मांग करता है, जो कि ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है।
राव के योगदान को मान्यता देना न केवल ऐतिहासिक सटीकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि संविधान का निर्माण एक सहयोगी प्रयास था, न कि एक व्यक्ति का। यह मुद्दा शिक्षा पाठ्यक्रम में बदलाव और सार्वजनिक स्मृति में संतुलन लाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
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