डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान: क्या सच में खत्म हुआ उनका सपना? 72 साल बाद जानें चौंकाने वाला सच!

23 जून 2025, आज भारतीय जनसंघ के संस्थापक और राष्ट्रवाद के प्रतीक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के 72वें बलिदान दिवस पर देशभर में श्रद्धांजलि दी जा रही है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (@pushkardhami) ने सुबह 7:17 बजे ट्वीट कर उनके योगदान को याद किया, जहां उन्होंने डॉ. मुखर्जी के नारे “एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेंगे” को दोहराया, जो जम्मू-कश्मीर के अलग संविधान के खिलाफ उनकी लड़ाई का प्रतीक था। इतिहास गवाह है कि 1952 में उनकी भूख हड़ताल ने सरकार को परमिट सिस्टम खत्म करने पर मजबूर किया था, जिसका परिणाम 2019 में धारा 370 के समाप्त होने के रूप में देखा गया।

वेरिफाइड सोर्स जैसे

@SNMishraBJP और

@kishan_bjp_sult ने भी उनके बलिदान को सलाम किया, जबकि ग्रामीण विकास मंत्रालय की 2016 में शुरू की गई श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुरबन मिशन (SPMRM) ने उनके 300 ग्रामीण क्लस्टर्स के विकास के सपने को साकार किया, जिसमें 109 आदिवासी और 191 गैर-आदिवासी क्लस्टर्स शामिल हैं। यह ₹51.42 अरब की योजना 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में लागू हो रही है। क्या यह डॉ. मुखर्जी के सपनों का पूरा होना है, या फिर उनकी कुर्बानी का राजनीतिक इस्तेमाल हुआ? जानकारों का मानना है कि उनका बलिदान आज भी देश को एकता की प्रेरणा देता है, लेकिन 1953 में उनकी संदिग्ध मौत पर अब भी सवाल उठते हैं, जिसके लिए बीजेपी ने 2011 में जांच की मांग की थी।

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