पुरी, ओडिशा (27 जून 2025): आज सुबह 07:43 बजे IST, महाप्रभु श्री जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा ने पुरी में इतिहास रच दिया! लाखों भक्तों का सैलाब बड़ा दंडा मार्ग पर जमा हुआ, जहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रंग-बिरंगे रथ गुंडिचा मंदिर की ओर बढ़ रहे हैं। तस्वीर में रथों की शानदार सजावट और श्रद्धालुओं की भक्ति देखने को मिल रही है, जिसमें भक्तों ने प्रभु के आशीर्वाद की प्रार्थना की। भक्तों ने “जय श्री जगन्नाथ” के जयकारे लगाए, जो इस पावन उत्सव की आत्मा को दर्शाता है।
रथ यात्रा, जो आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाई जाती है, की शुरुआत अक्षय तृतीया (30 अप्रैल 2025) से तैयारियों के साथ हुई। यह त्योहार 12वीं सदी से चला आ रहा है और इसे दुनिया का सबसे बड़ा रथ उत्सव माना जाता है। ओडिशा सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 2015 के नबकलेम्बर महोत्सव में 30 लाख से अधिक श्रद्धालु शामिल हुए थे, जिसका बजट 4.1 करोड़ रुपये से अधिक था। दैत्यपति, जो ओडिशा के पहाड़ी जनजातियों के वंशज हैं, रथ यात्रा के मुख्य rituals में भाग लेते हैं, जो इसकी आदिवासी जड़ों को उजागर करता है और जाति-आधारित पंडितई की परंपरा को चुनौती देता है।
रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व क्या है?
रथ यात्रा का आयोजन भगवान जगन्नाथ के अपने मंदिर से गुंडिचा मंदिर (उनकी मौसी का घर) तक की यात्रा के प्रतीक के रूप में होता है। यह त्योहार भक्तों को प्रभु के दर्शन का अवसर प्रदान करता है और उनके प्रति समर्पण को दर्शाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, रथ की रस्सी खींचने से भवसागर से मुक्ति मिलती है, “छुए जो रथ की रस्सी को, मुक्त हो भवसागर की कसती को।” इसका सामाजिक महत्व भी है, क्योंकि यह समुदाय को एकजुट करता है और सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखता है।
क्या है इसके पीछे की कहानी?
रथ यात्रा की उत्पत्ति एक प्राचीन हिंदू कथा से जुड़ी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान जगन्नाथ के मंदिर का निर्माण करवाया था। एक बार, भगवान जगन्नाथ ने अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की यात्रा की। यह घटना रथ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है, जैसा कि www.rathyatra.net पर वर्णित है। इसके अलावा, स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण में भी इस उत्सव का उल्लेख मिलता है, जो इसकी प्राचीनता को सिद्ध करता है। पश्चिमी दुनिया में “juggernaut” शब्द की उत्पत्ति भी इसी रथ यात्रा की भव्यता से हुई, जैसा कि इतिहासकार Knut Jacobsen के अध्ययन में बताया गया है।

वैश्विक स्तर पर भी इसकी गूंज सुनाई दे रही है। आर्थिक समय (Economic Times) के अनुसार, 29 जून 2025 को प्रयागराज में ISKCON की रथ यात्रा 4 बजे शुरू होगी, जबकि स्कॉटलैंड, अमेरिका और बांग्लादेश जैसे देशों में भी उत्सव मनाया जा रहा है। ओडिशा के पर्यटन विभाग के अनुसार, इस साल रथ यात्रा से राज्य की अर्थव्यवस्था को 500 करोड़ रुपये से अधिक का लाभ होने की उम्मीद है।
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