डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती: एक भारत, एक संविधान, एक ध्वज के सपने को साकार करने वाले महानायक

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारतीय राजनीति, शिक्षा, और राष्ट्रीय एकता के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम हैं। उनका जीवन और कार्य देश की एकता, संप्रभुता, और शिक्षा के लिए समर्पित रहा। 6 जुलाई, 2025 को उनकी जयंती पर, हम उनके योगदानों को याद करते हैं, जो आज भी भारतीय समाज और राजनीति को दिशा दे रहे हैं।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को कोलकाता (तब कलकत्ता) में एक प्रसिद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता, सर आशुतोष मुखर्जी, एक renowned शिक्षा शास्त्री और कोलकाता विश्वविद्यालय के उपकुलपति थे, जिन्होंने उन्हें शिक्षा और बौद्धिकता की ओर प्रेरित किया। डॉ. मुखर्जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में पूरी की और बाद में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की। कैम्ब्रिज में उनके समय के दौरान, उन्होंने भारत के राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों में गहरी रुचि विकसित की, जो बाद में उनके करियर को आकार देने में मदद की।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
युवा अवस्था से ही डॉ. मुखर्जी राष्ट्रीय आंदोलनों से प्रभावित थे। 1920 के दशक में, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। हालांकि, उनकी विचारधारा और कांग्रेस की नीतियों में मतभेदों के कारण, उन्होंने बाद में एक अलग राजनीतिक पथ चुना।

भारतीय जनसंघ की स्थापना
1951 में, डॉ. मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ (BJS) की स्थापना की, जो राष्ट्रीयता, सांस्कृतिक एकीकरण, और एक मजबूत, एकीकृत भारत के विचार को बढ़ावा देने के लिए समर्पित थी। यह पार्टी बाद में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के रूप में विकसित हुई, जो आज भारतीय राजनीति में एक प्रमुख शक्ति है।

राष्ट्रीय एकता के लिए संघर्ष
डॉ. मुखर्जी का सबसे बड़ा योगदान राष्ट्रीय एकता और संप्रभुता के लिए उनका अथक प्रयास रहा। उन्होंने “एक देश, एक संविधान, एक ध्वज” के सिद्धांत को आगे बढ़ाया, जो विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे (अनुच्छेद 370) के खिलाफ था। 1953 में, उन्होंने कश्मीर में विशेष परमिट व्यवस्था का विरोध करते हुए एक आंदोलन शुरू किया, जिसके दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। उनका नारा, “एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान, नहीं चलेंगे,” आज भी राष्ट्रीय एकता के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
2019 में अनुच्छेद 370 के निरसन को उनके दृष्टिकोण का साकार रूप माना गया। राम मधव ने The Hindu में प्रकाशित एक लेख में कहा, “श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान को सम्मानित किया जा रहा है और सात दशक पुरानी मांग हमारे सामने पूरी हो रही है।”

शिक्षा में योगदान
डॉ. मुखर्जी एक प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री भी थे। उन्होंने 1945 में कोलकाता में श्यामप्रसाद कॉलेज की स्थापना की, जो उनकी शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। दिल्ली विश्वविद्यालय के श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज की स्थापना 1969 में उनकी स्मृति में की गई थी। उनकी शिक्षा सुधार की पहल ने कई पीढ़ियों को प्रेरित किया और भारतीय शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने में योगदान दिया।

संविधान सभा में भूमिका
स्वतंत्रता के बाद, डॉ. मुखर्जी संविधान सभा के सदस्य थे और उन्होंने कई महत्वपूर्ण बहसों में भाग लिया। उन्होंने अल्पसंख्यकों, क्षेत्रीय भाषाओं, और मुस्लिम लीग की अनुपस्थिति के प्रभाव जैसे मुद्दों पर अपनी राय रखी। उनकी इन बहसों ने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

सांस्कृतिक और सामाजिक सुधार
डॉ. मुखर्जी ने सांस्कृतिक एकीकरण और सामाजिक सुधार के लिए भी काम किया। उनका मानना था कि भारत की विविधता को एकता में बदलने के लिए सांस्कृतिक और सामाजिक सुधार आवश्यक हैं। उनकी ये पहलें भारतीय समाज को एक मजबूत और एकीकृत इकाई बनाने में मदद की।

सरकारी पहल और स्मृति
डॉ. मुखर्जी की स्मृति में, भारत सरकार ने कई पहल की हैं। श्यामा प्रसाद मुखर्जी रूरबन मिशन (SPMRM) 2016 में लॉन्च किया गया, जिसका उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच की खाई को पाटना था। दिल्ली और कोलकाता में प्रमुख सड़कों का नाम उनके सम्मान में रखा गया है, और कई शैक्षिक संस्थान, जैसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, उनकी स्मृति को संजोए हुए हैं।

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