आपातकाल का काला सच: 25 जून, 1975

25 जून 1975: जब लोकतंत्र पर पड़ी आपातकाल की काली छाया, जानें उस रात की सच्चाई!

आपातकाल का काला सच: 25 जून, 1975 को भारतीय लोकतंत्र पर सबसे बड़ा धक्का लगा जब इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया। यह वह समय था जब संविधान, अभिव्यक्ति की आजादी और नागरिक अधिकारों को कुचल दिया गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (

@myogiadityanath) ने इसे लोकतंत्र का काला दिन बताते हुए उन सेनानियों को नमन किया जिन्होंने इस अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ी। शाह कमीशन की 1978 की रिपोर्ट के अनुसार, इस दौरान 80,000 से ज्यादा RSS और जनसंघ के कार्यकर्ताओं को बिना ट्रायल जेल में डाला गया था।

मीडिया पर सेंसरशिप और अत्याचार: इतिहासकारों के अनुसार, 253 अखबारों पर सेंसरशिप लगाई गई और फोन टेपिंग आम बात हो गई।

@CommanGUY के ट्वीट में पुराने रेडियो की तस्वीर के साथ आपातकाल की याद दिलाई गई, जो उस दौर में मीडिया की आवाज दबाने का प्रतीक थी। इसके अलावा, 1976 में भारतीय चिकित्सा परिषद के अध्ययन के मुताबिक, 60 लाख से ज्यादा पुरुषों को जबरन नसबंदी के लिए मजबूर किया गया, जो मानवाधिकार हनन का एक भयावह उदाहरण है।

CIA की गुप्त रिपोर्ट: 2013 में डीक्लासिफाइड CIA दस्तावेजों से पता चला कि इंदिरा गांधी के आपातकाल के फैसले से अमेरिकी खुफिया एजेंसी भी अनजान थी। यह दर्शाता है कि यह कदम व्यक्तिगत सत्ता बचाने के लिए उठाया गया था, जैसा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के 12 जून, 1975 के फैसले के बाद उनके चुनाव में धांधली के आरोपों के बाद हुआ था।

आज का सबक: 25 जून, 2025 को इस घटना की 50वीं वर्षगांठ पर, यह याद करना जरूरी है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए सतर्कता कितनी महत्वपूर्ण है। क्या हम भूल जाएंगे उस रात की साजिश?

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