आतंकवाद पर सख्त रुख!

भारत ने SCO समिट में जॉइंट स्टेटमेंट पर साइन क्यों नहीं किया: एक विस्तृत विश्लेषण

भूमिका

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की हालिया समिट, जो चीन के क़िंगदाओ में आयोजित हुई, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चर्चा का केंद्र बन गई जब भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने समिट के जॉइंट स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। यह फैसला सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि भारत की आतंकवाद के प्रति सख्त नीति और क्षेत्रीय राजनीति में उसकी भूमिका का स्पष्ट संदेश था।

क्या था विवाद?

  • SCO समिट का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच सुरक्षा, शांति और सहयोग को बढ़ावा देना था।
  • ड्राफ्ट जॉइंट स्टेटमेंट में पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हुए ट्रेन हाईजैकिंग का उल्लेख था, लेकिन भारत के जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में अप्रैल 2025 में हुए आतंकी हमले का जिक्र नहीं था, जिसमें 26 लोग मारे गए थे।
  • भारत ने इस पक्षपातपूर्ण रवैये का विरोध किया और कहा कि आतंकवाद पर दोहरे मापदंड स्वीकार्य नहीं हैं।

भारत का स्टैंड

  • राजनाथ सिंह ने समिट में स्पष्ट कहा कि आतंकवाद, कट्टरता और क्षेत्रीय असुरक्षा क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती है।
  • भारत चाहता था कि दस्तावेज़ में पहलगाम हमले का स्पष्ट उल्लेख हो, जिससे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर वैश्विक ध्यान जाए।
  • चीन और पाकिस्तान ने मिलकर इस मुद्दे को दबाने की कोशिश की, जिससे भारत ने दस्तावेज़ पर साइन करने से मना कर दिया।

SCO समिट में क्या हुआ?

  • भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान समेत 10 सदस्य देशों के रक्षा मंत्री मौजूद थे।
  • भारत और पाकिस्तान के रक्षा मंत्री पहली बार पहलगाम हमले के बाद आमने-सामने बैठे, लेकिन कोई औपचारिक बातचीत नहीं हुई।
  • भारत के इनकार के बाद समिट का कोई संयुक्त बयान जारी नहीं हो सका, जो SCO जैसे बहुपक्षीय मंच के लिए असामान्य घटना है।

क्षेत्रीय और वैश्विक संदेश

  • भारत ने साफ कर दिया कि वह आतंकवाद के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगा, चाहे वह कितना भी बड़ा मंच क्यों न हो।
  • चीन और पाकिस्तान की कोशिश थी कि बलूचिस्तान का मुद्दा उठाकर भारत पर दबाव बनाया जाए, लेकिन भारत ने इसे सफल नहीं होने दिया।
  • यह घटना SCO की एकता और प्रभावशीलता पर भी सवाल खड़े करती है, खासकर जब सदस्य देशों के हित टकराते हैं।

भारत का SCO समिट में जॉइंट स्टेटमेंट पर साइन न करना सिर्फ एक औपचारिक विरोध नहीं, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ उसकी “ज़ीरो टॉलरेंस” नीति का प्रमाण है। यह घटना बताती है कि भारत अब वैश्विक मंचों पर अपने हितों के लिए मजबूती से खड़ा है, भले ही इसके लिए उसे अकेले ही क्यों न रहना पड़े

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