भारत का पहला चिप क्रांति!

भारत की तकनीकी क्रांति: टाटा का पहला सेमीकंडक्टर प्लांट शुरू, अब चिप्स में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा देश!

नई दिल्ली: भारत ने तकनीकी क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स ने ताइवान की दिग्गज कंपनी पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्प (PSMC) के साथ मिलकर गुजरात के धोलेरा में देश का पहला सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन प्लांट शुरू किया है। इस मेगा प्रोजेक्ट से भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में क्रांति आने की उम्मीद है, जिससे देश को स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए चिप्स के आयात पर निर्भरता कम होगी।

91,000 करोड़ की लागत, 50,000 वेफर्स की क्षमता

धोलेरा में स्थापित यह प्लांट 91,000 करोड़ रुपये के निवेश से बनाया जा रहा है, जिसमें केंद्र सरकार 50% पूंजीगत व्यय का योगदान दे रही है। इसकी प्रति माह 50,000 वेफर्स की उत्पादन क्षमता होगी, जिसका मतलब है कि प्रति वर्ष लगभग 3 अरब चिप्स का निर्माण। यह प्लांट 28, 50, और 55 नैनोमीटर नोड्स पर चिप्स बनाएगा, जो इलेक्ट्रिक वाहन, टेलीकॉम, रक्षा, और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में उपयोग होंगे।

असम में दूसरा प्लांट, 27,000 करोड़ का निवेश

टाटा समूह ने असम के मोरीगांव में भी एक सेमीकंडक्टर असेंबली और टेस्टिंग यूनिट की स्थापना शुरू की है, जिसमें 27,000 करोड़ रुपये का निवेश होगा। यह यूनिट प्रतिदिन 48 मिलियन चिप्स का उत्पादन करेगी और ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रिक वाहन, और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों को लक्षित करेगी। यह पूर्वोत्तर भारत में पहली ऐसी सुविधा होगी, जो 27,000 से अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा करेगी।

2026 तक पहली चिप, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की धमक

केंद्रीय संचार और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि धोलेरा प्लांट से पहली स्वदेशी चिप दिसंबर 2026 तक तैयार होगी। उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत 2029 तक दुनिया के शीर्ष पांच सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम में शामिल हो जाएगा। यह कदम न केवल भारत को आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में ताइवान और चीन जैसे देशों के दबदबे को चुनौती देगा।

क्यों है यह बड़ी उपलब्धि?

सेमीकंडक्टर चिप्स आधुनिक तकनीक का आधार हैं, जो स्मार्टफोन, लैपटॉप, कारों, और रक्षा उपकरणों तक हर जगह उपयोग होती हैं। अभी तक भारत को इन चिप्स के लिए ताइवान, दक्षिण कोरिया, और चीन जैसे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था। कोविड महामारी के दौरान वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में आई रुकावटों ने इस निर्भरता के जोखिम को उजागर किया था। अब टाटा का यह कदम भारत को सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में एक नया वैश्विक खिलाड़ी बनाएगा।

रोजगार और आर्थिक प्रभाव

धोलेरा और असम के प्लांट्स से मिलाकर 1 लाख से अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होने की उम्मीद है। यह न केवल तकनीकी क्षेत्र में बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बूस्ट देगा। साथ ही, स्वदेशी चिप्स के उत्पादन से स्मार्टफोन, टीवी, और कार जैसे उत्पादों की कीमतों में कमी आ सकती है, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ होगा।

ताइवान की PSMC की भूमिका

ताइवान की PSMC, जो लॉजिक और मेमोरी फाउंड्री में विशेषज्ञता रखती है, इस प्रोजेक्ट में तकनीकी सहायता और डिजाइन सपोर्ट प्रदान करेगी। PSMC के चेयरमैन फ्रैंक हुआंग ने कहा कि यह साझेदारी दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद होगी और भारत को सेमीकंडक्टर हब बनाने में मदद करेगी।

आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रोजेक्ट को सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम का हिस्सा बताते हुए कहा कि यह भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है। टाटा समूह के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने भी इसे भारत के पहले AI-सपोर्टेड ग्रीनफील्ड फैब के रूप में रेखांकित किया, जो वैश्विक स्तर पर चिप्स की आपूर्ति करेगा।

यह कदम न केवल भारत की तकनीकी क्षमता को बढ़ाएगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर देश की स्थिति को भी मजबूत करेगा। क्या यह भारत को सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग का नया हब बना देगा? यह तो समय बताएगा, लेकिन शुरुआत निश्चित रूप से शानदार है!

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